।। ओ३म् ।।
' विकासवाद कहे या ह्रासवाद '
के उसपर कुछ कुल तीन प्रश्न उत्त्पन होते है । वह इस तरहा
:-
१) क्या आदि सृष्टि में मनुष्य का
बाप मनुष्य ही था, अथवा विकासवाद ( डार्विन थ्योरी ) के अनुसार क्रमक्रम
किन्ही दूसरे प्राणियों ( बन्दर ) की शक्लो में होता हुआ '
यह मनुष्य '
वर्त्तमान मनुष्य हुआ ?
२) क्या आदि सृष्टिमें '
मनुष्य सृष्टि '
किसी एक ही स्थान पर
हुई, अथवा पृथ्वी के भिन्न भिन्न भागोंमें ?
३) क्या मनुष्य कोई न कोई भाषा
बोलता हुआ ही पैदा हुआ, अथवा उसने क्रम क्रम बहुत दिनके बाद कोई भाषा बनाली ?
इन्ही प्रश्नों की सोच में पड़कर बहुधा लोग हैरान हो जाते है और मनमानी
कल्पनाओं से काम लेकर भ्रम में पद जाते है । अतएव हम इन शंकाओ का यथा बुद्धि उत्तर
देते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते है । इस लेख में हम पहले प्रश्न का उत्तर देते
है ।
उत्तर तीनही प्रकारसे दिया जा सकता है । पहिला वैज्ञानिक रीतिसे अर्थात
सृष्टिके नियमोंके अनुसार । दूसरा यूरोपीय विद्वानों के मतानुसार । तीसरा भारतीय
प्राचीन ऋषियों के अनुसार । हम इन तीनों प्रश्नों के निर्णय में तीनो ही प्रकार के
उत्तर देते है और निर्णय करना विचारशील पुरुषोंपर छोड़ते हैं ।
पहिले प्रश्न का उत्तर
।
वेविलन के कबरोंसे जो मनुष्यों की लाशें निकलती है विद्वानोने उनको सात हजार
वर्ष की पुराणी बताया है । वे वैसी ही है जैसे आज कलके मनुष्य है । इसी
प्रकार स्पेन में गायोंकी तस्वीरे मिली है जो २० हजार वर्षकी है और वैसी ही है
जैसी इन गौओंकी तथा खींचने वाले मनुष्य भी ऐसे ही कलगधारी थे जैसे अब है । देखो चिल्ड्रेन मैगजीन फरवरी १९१४ ,
इसके अतिरिक्त चीन के मरू मैदानों में खोदने से मनुष्य की
जो वस्तियाँ पायी गई है । उस समय की है, जब वहाँ समुद्र नहीं था । वस्ती के बाद समुद्र का आना और न
जानें कब रेत को छोड़कर चलाजाना, बता रहे है कि '
मनुष्य अपनी इसी शकल
में लाखों वर्ष पूर्व भी इसी प्रकार का था जैसा अब है '
। क्योंकि वहाँ जो मनुष्य संबंधी पदार्थ पाये गए है वैसे ही
जैसे इस समय पाये जाते है । अतः हम इस विषयको संसारकी आयुके साथ जाँच ते है ।
संसारकी आयु नियत करनेमें युरोपीय पंडितोंका मतभेद होते हुए भी जो संख्या आखिर
में निर्धारित हुई है, हम नीचे देते है और गणित से इस बात की जाँच करते है कि क्या
डार्विन का मत सत्य है ।
यूरोप के धर्मचार्योने अंतिम
निर्णय लिखा है कि संसारको पैदा हुए ७०७१ वर्ष हुए ।
पदार्थ विज्ञानी लोग गर्मी प्रकाश और गृह आदिके तारतम्य से जो समय नियत करते
है वह ४०,००,००० चालीस लक्ष वर्ष है ।
भूगर्भ विद्याके पंडितोने बड़ी सावधानी के साथ जाँच करके सिद्ध किया है कि
पृथिवी दश करोड़ वर्ष की पुरानी है ।
समुद्रविद्या विशारद ' प्रोफ़ेसर जोली '
ने समुद्र के खारी पानी की जांच करके बताया है और फैसला कर
दिया है कि समुद्र का पानी, इस प्रकार खारी, दश करोड़ वर्ष में हो सकता है । इसी अंतिम निष्पत्ति की वजह '
जोली' महाशय को विलायती '
रॉयल सोसायटी '
सुवर्ण पदक देकर सम्मानित किया है ।
पृथिवी का बनना जब आरम्भ हुआ था, रेडियम के द्वारा उस समय से लेकर आजतक का एक समय और निकाला
गया है , जिसकी मर्यादा ७,५०,००,००,००० साथ अरब पचास करोड़ वर्ष है । पर यह समय नियत करते करते आविष्कर्ता स्वयं कहता है
कि ' ऐसे तो यह संख्या अनुमान से परे प्रतीत होती है परंतु वास्तव
मे रेडियम की शक्तिसे सम्बन्ध रखनेवाली गणना का यह फल है '
अतः बड़े सोचके साथ ७,५०,००,००,०००
सात अरब पचास करोड़ वर्ष की
पृथिवी ज्यादासे ज्यादा कही जाती है ।
इसपर पृथिवी पर कितने प्राणी और
कितने वनस्पति, यह जान लेने पर परिणाम साफ़ निकल आयेगा ।
कुछ वर्ष पूर्व स्पेंसर साहब ने अपने एजुकेशन नामी पुस्तक में लिखा था कि " वनस्पति
विद्या के जानने वालोंने वनस्पति के जो भेद किये है उनकी संख्या ३,२०,०००
तीन लाख बीस हजार तक पहुँची है और प्राणी शास्त्र के ज्ञाताओं की प्राणियोंकी जिन
जिन तरह तरह की सुरतों से काम पड़ता है उनकी संख्या कोई २०,००,०००
बीस लाख है " ( देखो शिक्षा प्रकरण पहिला विषय ६९ )।
स्पेंसर के बाद और भी जांच हुई है और कई लाख योनियाँ और नई
खोजी है । भारत वर्ष की गणना करनेवालों ने तो ८४,००,०००
चौरासी लक्ष योनियों की
गिनती की है । इन सब बातोंको ध्यान में रखकर सुनो :-
अगर हम २०,००० बीस हजार वर्ष पाहिले मनुष्य को दूसरी शकल में माने और इसी प्रकार तेईस
लाख ( नहीं नहीं चौरासी लाख ) शक्लों में बीस बीस हजार वर्ष के बाद अन्तर मानें तो
२३,००,००० × २०,००० = ४६,००,००,००,०००
छियालीस अरब वर्ष
होते है और यदि मनुष्य ( चीन की वस्ती के माफिक ) को १,००,००० एक लाक वर्ष
पूर्व का माने और ८४,००,००० चौरासी लक्ष योनिके साथ गुणा करें ( जो ठीक है ) तो ८४,००,००० ×
१,००,०००
= ८,४०,००,००,००,००० आठ खरब चालीस अरब वर्ष का समय चाहिए परंतु पृथिवी की आयु ( जो वेदके अनुसार
अबतक १,९७,००,००,००० )
यूरोप के विद्वानोने अबतक दश करोड़ ही मानी है,
जिससे यह विकासवाद का सिद्धांत गलत सिद्ध होता है ।
यदि वे यह कहें कि नहीं, मनुष्य की लिंग ( शृंखला ) जगत भरके प्राणियोंके साथ नहीं
है किंतु विशेष विशेष प्राणियोंके साथ है और इस प्रकारकी कई श्रेणियां है । आदी
में बीज भी कई प्रकार के थे । तो हम कहेंगे कि यह नाम मात्र का ही विकासवाद है ।
क्योंकि ये तो सभी लोग वृक्ष के पाहिले बीज मानते है और सब बीजों को पृथक पृथक
बताते हैं।
अक्षरविज्ञान भाग १ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/10/blog-post.html
अक्षरविज्ञान भाग ३ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/10/blog-post_28.html
अक्षरविज्ञान भाग १ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/10/blog-post.html
अक्षरविज्ञान भाग ३ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/10/blog-post_28.html
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