Sunday 30 October 2016

अक्षरविज्ञान भाग ५

" आदि सृष्टि मे मनुष्य के उत्पन्न होनेपर शंका "

     विकासवाद वालों के दिलोपर यह शंका भी होती होगी कि अकस्मात् कैसै अनेक प्राणी और मनुष्यादि शरीरवाले सृष्टि की आदिमे अनायास अपने अपने रुप में निकल पडे होंगे ? हम कहते है घबराने की बात नही है . सावधान होकर सृष्टि को देखो, वह आपको जवाब दे देगी । देखो बरसात में  बीरबहूटी ( बरसाती किड़ा ), केंचुऐ , मेंढक आदि कैसै उसी रुप में पैदा हो पढते है जिसमे वे सैकड़ों वर्ष पूर्वसे हरसाल बरसात में पैदा होते थे । उनको  क्रमक्रम विकासकी जरुरत क्यों नहीं होती मेंढक तो ऐसा विचित्र जन्तु है और अपने जन्मका ऐसा सुन्दर नाटक दिखलाता है कि लोग दंग रह जाते है । किसी मेंढक का चूर्ण बनाकर और बारीक कपडे में छानकर शीशी में बन्द कर लीजिये बरसात में  उस चूर्णको पानी बरसते सय जमीनपर डाल दीजीये तुरन्त ही छोटे छोटे मेंढक कूदने लगेंगे । इनको क्रमक्रम उन्नतिकी क्यों  दरकार नहीं होती ? आज जब सृष्टि में इतने दिन होजानेपर भी इतना बल मौजूद है कि वह हरसाल बरसात मे एक एक फुट और डेढ़ डेढ़ फुटके कीडे केंचुऐ बिना माता पिताके पैदा कर सकती है तो क्या अरबों वर्ष पूर्व जब सृष्टि में  पूर्ण बल मौजूद था, इस पाँच फीट लम्बे कीडे ( मनुष्य ) के उत्पन्न करने में असमर्थ कही जा सकती है ? कभी नहीं । अतः यह निश्चय है निर्विवाद है निसंशय है कि आदिसृष्टि में मनुष्य इसी प्रकारका हुआ जिस प्रकार का अब है । और होना भी तो चाहिये था ।
        क्योंकि पूर्व सृष्टि में जिनको मनुष्य शरीरके सुख दुःख भोगने को बाकी रहगये थे उन्हे मनुष्य बनाना ही तो न्याय था क्योंकि यदि कोई मनुष्य दिन समाप्त हो जानेपर रात्रि आजाने के कारण सोजाय तो क्या दूसरे दिन प्रातःकाल उसे मनुष्य ही रुपमें न जागना चाहिये ? अवश्य मनुष्य ही रुपमें जागना चाहिये । बस ठीक इसी भाँति आदि सृष्टि में भी कर्मानुसार अमैथुनी सृष्टी द्वारा प्रथम मनुष्यों की सृष्टि हुई ।

अब कुछ विद्वानों युरोपीय और भारतीय के प्रमाण देते है :-

(1) प्रोफेसर मैक्समुलर लिखते हैं कि  " हमें इस बात के चिन्तन करने का अधिकार है कि करोड़ों मनुष्यों के होजाने के पहिले आदिमें थोडेही मनुष्य थे । आजकल हमें  बताया जाता है कि यह कभी नहीं  होसकता कि पहिले पहिले मनुष्य उत्पन्न हुआ हो । एक समय था जब कि थोडेही आदिपुरुष और थोडीही आदि स्त्रियाँ उत्पन्न हुई थी " । ( देखो चिप्स फाॅर्म ए जर्मन वार्कशाॅप जिल्द 1 पृष्ठ 237 क्लासी फिकेशन ऑफ मैन काईंड )

(2) न्यायमूर्ति मद्रास हायकोर्टा के भूतपूर्व  जज टी.एल. स्ट्रैअ महोदयने तो अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है कि " आदिसृष्टि अमैथुनी होती है और इस अमैथुनी सृष्टि में उत्तम और सुडौल शरीर बनते है "।

संसारकी प्रचलित सभ्यताओं से साबित होता है कि मनुष्य आरम्भ सृष्टि से ही इस आकार प्रकारका है -

मानव उत्पत्ती के बाद से ।
आदिसृष्टी से संकल्पसंवत् = १,९७,२९,४०,११७
वैवस्त मनु से आर्यसंवत्   = १२,०५,३३,११७
चीन के प्रथम राजा से चीनी संवत् = ९,६०,०२,५१७
खता के प्रथम पुरुष से खताई संवत् = ८,८८,४०,३८८
पृथिवी उत्पत्ति का चाल्डियन संवत् =२,१५,००,०८७
ज्योतिष -विषयक् चाल्डियन  संवत्= ४,७०,०८७
ईरान के प्रथम राजा से ईरानियन संवत्= १,८९,९९५
आर्यों  के फिनीशिया जाने के समय से फिनीशियन संवत्=३०,०८७
इजिप्त जाने के समय से इजिप्शियन  संवत् = २८,६६९
किसी विशेष घटना से इबरानियन संवत्=६,०२९
कलियुग के आरंभ  से कलियुगी संवत्=५,११७
युधियुधिष्के प्रथम राज्यरोहण से युधिष्ठिर सवंत्= ४,१७२
मूसा के धर्मप्रचार से मूसाई संवत् =३,५८३
ईसा के जन्म दिन से ईसाई संवत्= २,०१६

" अब प्राचीन ऋषियों का सिद्धांत "

' तत्र शरीरं द्विविधं योनिजमयोनिजं च ' ।। 5 ।। 4/2/5
ऋषि  कणाद = वैशेषिक दर्शन शास्त्र  ।

अर्थात् दो प्रकारके शरीर होते है । योनिज और अयोनिज, जिनको हम मैथुनी और अमैथुनी सृष्टि कहते है । उपरोक्त सूत्रकी व्याख्या गौतम जीने प्रशस्तपाद में  इस प्रकार की है :-

" तत्रयोनिजमनपेक्षित शुक्रशोणित देवपीणां शरीर धर्मविशेषसंहितेभ्योऽणुम्यो जायते "

इन वचनों में अमैथुनी सृष्टि  का यह निर्वचन किया है कि अयोनिज शरीर रजवीर्य के बिनाही होते है, यही बात पुरुषसुक्त के इस वचन मे स्पष्ट होती है कि -

' तेन॑ दे॒वा अय॑जन्त । सा॒ध्या ऋष॑यश्च॒ ये '


अर्थात् आदि में देव साध्य ओर ऋषि परमात्मासे ही हुए । यहातक हमने अपनी क्षुद्र बुद्धि  के परिणामसे सृष्टि नियमो और विज्ञान के गूढ़ रहस्यों, प्राणी, धर्मशास्त्र और वनस्पति शास्त्र के धर्मों के साथ साथ युरोपीय और भारतीय मान्य पण्डितों के अनुमोदन समर्थन तथा संसारके प्रचलित सभ्यताओं के साथ सावित किया कि आदिसृष्टि में  मनुष्य ही पैदा हुआ था । मनुष्य  का पिता मनुष्य ही था । साथही साथ यह भी दिखाया कि विकासवाद या डार्विन थ्योरी मतानुसार सृष्टि शृंखला सिद्ध नहीं  होती । आशा है कि विचारशील पुरुष इस बात को तनिक समय न लगाते ही ग्रहण कर आगः अनुसंधान करनेकी सुविधा प्राप्त करेंगे ।

अक्षरविज्ञान भाग ४ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/10/blog-post_29.html

अक्षरविज्ञान भाग ६ => http://akshar-vigyan.blogspot.in/2016/11/blog-post.html

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